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लेखनी कहानी -09-Mar-2023- पौराणिक कहानिया

 

रकिया-(धीरे से) बहन, कहीं बिदक जाए।

 

बजरंगी-क्या करूँ, बेगम साहब, गरीब आदमी हूँ। लड़कों को दूध-दही जो कुछ हुकुम होगा, खिलाता रहूँगा; लेकिन नगद तो इससे ज्यादा मेरा किया होगा।

 

रकिया-अच्छा, तो रुपयों का इंतजाम करो। खुदा चाहा, तो सब तय हो जाएगा।

 

जैनब-(धीरे से) रकिया, तुम्हारी जल्दबाजी से मैं आजिज हूँ।

 

बजरंगी-माँजी, यह काम हो गया, तो सारा मुहल्ला आपका जस गायगा।

 

जैनब-मगर तुम तो 50 रुपये से आगे बढ़ने का नाम ही नहीं लेते। इतने तो साहब ही दे देंगे, फिर गुनाह बेलज्जत क्यों किया जाए।

 

बजरंगी-माँजी, आपसे बाहर थोड़े ही हूँ। दस-पाँच रुपये और जुटा दूँगा।

 

बजरंगी-बस, दो दिन की मोहलत मिल जाए। तब तक मुंसीजी से कह दीजिए, साहब से कहें-सुनें।

 

जैनब-वाह महतो, तुम तो बड़े होशियार निकले। सेंत ही में काम निकालना चाहते हो। पहले रुपये लाओ, फिर तुम्हारा काम हो, तो हमारा जिम्मा।

 

बजरंगी दूसरे दिन आने का वादा करके खुश-खुश चला गया, तो जैनब ने रकिया से कहा-तुम बेसब्र हो जाती हो। अभी चमारों से दो पैसे खाल लेने पर तैयार हो गईं। मैं दो आने लेती, और वे खुशी से देते। यही अहीर पूरे सौ गिनकर जाता। बेसब्री से गरजमंद चौकन्ना हो जाता है। समझता है, शायद हमें बेवकूफ बना रही हैं जितनी ही देर लगाओ, जितनी बेरुखी से काम लो, उतना एतबार बढ़ता है।

 

रकिया-क्या करूँ बहन, मैं डरती हूँ कि कहीं बहुत सख्ती से निशाना खता कर जाए।

 

जैनब-वह अहीर रुपये जरूर लाएगा। ताहिर को आज ही से भरना शुरू कर दो। बस, अजाब का खौफ दिलाना चाहिए। उन्हें हत्थे चढ़ाने का यही ढंग है।

 

रकिया-और कहीं साहब माने, तो?

 

जैनब-तो कौन हमारे ऊपर नालिश करने जाता है।

 

ताहिर अली खाना खाकर लेटे थे कि जैनब ने जाकर कहा-साहब दूसरों की जमीन क्यों लिए लेते हैं? बेचारे रोते फिरते हैं।

 

ताहिर-मुफ्त थोड़े ही लेना चाहते हैं! उसका माकूल मुआवजा देने पर तैयार हैं।

 

जैनब-यह तो गरीबों पर जुल्म है।

 

रकिया-जुल्म ही नहीं है, अजाब है। भैया, तुम साहब से साफ-साफ कह दो, मुझे इस अजाब में डालिए। खुदा ने मेरे आगे भी बाल-बच्चे दिए हैं, जाने कैसी पड़े, कैसी पड़े; मैं यह अजाब सिर पर लूँगा।

 

जैनब-गँवार तो हैं ही, तुम्हारे ही सिर हो जाएँ। तुम्हें साफ कह देना चाहिए कि मैं मुहल्लेवालों से दुश्मनी मोल लूँगा, जान-जोखिम की बात है।

 

रकिया-जान-जोखिम तो है ही, ये गँवार किसी के नहीं होते।

 

ताहिर-क्या आपने भी कुछ अफवाह सुनी है?

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